इलाहाबाद। यूपी पीसीएस (जे.) परीक्षा में हिंदी भाषा को उप्र लोकसेवा आयोग से तवज्जो न मिलने और अवसर की बाध्यता के विरोध के स्वर तेज हो गए हैं। प्रश्न पत्र अंग्रेजी के साथ ही हिंदी में भी तैयार करने और अवसर की बाध्यता को समाप्त किए जाने के लिए प्रतियोगी छात्रों ने पिछले दिनों आंदोलन किया था, बुधवार को भी कई छात्र-छात्राओं ने आयोग के अध्यक्ष से मिलकर समस्याएं बताईं, साथ ही मांग को तर्क सहित उनके समक्ष रखा। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की मुख्य परीक्षा में अंग्रेजी भाषा के 200 अंकों का प्रश्न पत्र होता है। इसमें हिंदी भाषा के अभ्यर्थियों को अधिकतम 20 अंक ही मिल पाते हैं। इससे प्रतिभावान होते हुए भी हिंदी भाषी छात्र छात्राएं अंग्रेजी भाषा के ज्ञान वाले छात्रों की तुलना में पिछड़ जाते हैं। उप्र लोकसेवा आयोग की ओर से यह भेदभाव उस दशा में हो रहा है जब प्रदेश की सभी निचली अदालतों में अधिकांश कामकाज हिंदी भाषा में ही होते हैं। वहीं देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी अदालतों में बहस, फैसले और अन्य कामकाज की भाषा हिंदी होने के पक्षधर हैं। पीसीएस जे. के प्रतियोगी छात्रों में भाषाई भेदभाव के प्रति विरोध पिछले दिनों ही शुरू किया था। आंदोलन भी हुए। इसके बावजूद आयोग की ओर से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला। बुधवार को यह मांग फिर उठी। न्यायिक सेवा समानता संघर्ष मोर्चा के बैनर तले रामकरन निर्मल, आशीष पटेल, रजनी मद्धेशिया, लक्ष्मी यादव, नीलम मिश्रा सहित अन्य छात्र छात्राओं ने आयोग पहुंचकर अध्यक्ष से मुलाकात की। उनसे पीसीएस जे. परीक्षा में अवसर की बाध्यता समाप्त किए जाने और अंग्रेजी के साथ ही प्रश्न पत्र हिंदी भाषा में भी तैयार करवाने की पुरजोर मांग की। आयोग के अध्यक्ष ने इस प्रतिनिधि मंडल को आश्वस्त किया है कि शासन, प्रशासन और न्यायालय स्तर से भी सुझाव मांगे जाएंगे आयोग उन पर सकारात्मक जवाब देगा।
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